by admin on | 2025-01-17 17:47:57 Last Updated by admin on2025-06-21 23:35:29
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महाकुंभ नगर। परमाराध्य परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती १००८ की मौजूदगी में शुक्रवार को परम धर्म संसद में “आयुर्वेद हिन्दू चिकित्सा पद्धति पर विचार” विषय पर चर्चा के बाद परमधर्मादेश जारी करते हुए कहा कि ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’ कहकर हिन्दु शास्त्रों में शरीर को प्रथम धर्मसाधन माना गया है। इसलिए प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य है कि वह अपने शरीर को सुरक्षित रखे।
वैसे तो अपने शरीर को सुरक्षित बनाए रखने की चिंता विश्व के हर शरीरधारी को स्वभावत: रहती ही है। विशेषकर मनुष्यों को, पर अन्यों की अपेक्षा हिन्दु परम धार्मिक को शरीर सुरक्षा के साथ-साथ शरीर की धर्म साधनता बनाए रखने- अर्थात् उसकी पवित्रता को बनाए रखने की भी आवश्यकता होती है। क्योंकि अपवित्र शरीर और अपवित्र मन से धर्मकार्य नहीं हो सकता। इसलिए ऋग्वेद के उपवेद के रूप में आयुर्वेद शरीर की सुरक्षा, संरक्षा के साथ-साथ उसकी पवित्रता को भी बनाये रखने के लिए आदिकाल से ही प्रवृत्त है। इसे उभयलोक हितैषी कहा जाता है ।
तस्यायुशो पुण्यतमो वेदो वेदविदं मतः। वक्ष्यते यनमनुषयानां लोकयोरुभयोर्हितम्।।
इसलिए आयुर्वेद को हिन्दू चिकित्सा पद्धति के रूप में माना जाता है। इसमें साइड इफेक्ट जैसा दोष भी नहीं है। यही नहीं, आयुर्वेद बीमारी को तो ठीक करता ही है, अगर इसे ठीक से अपनाया जाए तो यह बीमार ही नहीं होने देता और तन, मन, इन्द्रिय, मन को प्रसन्न बनाये रखता है। लौकिक अभ्युदय के साथ ही साथ पारलौकिक निः श्रेयस की भी सिद्धि के लिए सभी हिन्दुओं को अपनी परम्परागत आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को ही अपनाने का आग्रह रखना चाहिए। और सरकारों को इसे भारत की प्राथमिक चिकित्सा पद्धति घोषित करना चाहिए।
सदन शुरू होते ही साध्वी पूर्णाम्बा जी ने ब्रह्मचारी केशवानंद जी छड़ीदार के देहावसान पर शोक प्रस्ताव पेश किया। इसके बाद कई धर्मांसदों ने ब्रह्मचारी केशवानंद जी के संस्मरणों को याद किया, फिर परमाराध्य की उपस्थिति में शोक प्रकट किया गया। इसके बाद कुछ समय के लिए सत्र को स्थगित कर दिया गया।
इसके बाद प्रश्नकाल शुरू हुआ, जिसमें रामलखन पाठक, बालमुकुंद बिलासपुर (उ.प्र.), डेजी रंगीन कश्मीर, राजा सक्षम सिंह योगी, विमल कृष्ण शास्त्री वृंदावन और अन्य कई धर्मांसदों ने अपने-अपने प्रश्न सदन के सामने रखे, जिसका परमाराध्य ने संतुष्टिपूर्ण जवाब दिया।
राजा समर्थ सिंह योगी ने विषय "आयुर्वेद हिंदू चिकित्सा पद्धति पर विचार" की स्थापना की। इसके बाद इंग्लैंड से आईं साध्वी वन देवी जी ने आयुर्वेद पर अपने विचार रखते हुए बताया कि अंग्रेजी दवाइयां खाने से शरीर खराब होता जा रहा है। आयुर्वेद से ही बेहतर उपचार हो रहा है आयुर्वेद की सबसे बेहतर दवाइयां भारत में ही हैं। विदेशी भी इनका इस्तेमाल करते हैं और वह भी संस्कृत बोलना चाहते हैं। बालमुकुंद जी ने कहा कि आयुर्वेद सशक्त चिकित्सा प्रणाली है। रामलखन पाठक जी ने आर्गनिक भोजन प्रणाली की जानकारी दी।। उन्होंने कहा कि जैसा खाओ अन्न वैसा बनेगा मन यानि हम आर्गेनिक खाएंगे तो कभी बीमार ही नहीं पड़ेंगे। अनुसुईया प्रसाद उनियाल ने पंचगव्य व आयुर्वेद से संबंधित जानकारी दी। इसके बाद केदार सिंह जी, संजय जैन जी, कुलदीप भार्गव जी ने भी विचार रखे। सुरेश अवस्थी जी ने कहा कि आयुर्वेद में कई शास्त्र लिखे गए हैं, जिनमें औषधियों का वर्णन है। भोजन कब करें, क्या करें और कैसे करें अगर इस पर भी ध्यान दिया जाए तो बहुत सारे रोग दूर हो जाएंगे।
उमाकांत पांडेय जी, ओम तिवारी जी, युवराज मालवीय- बैतुल मध्यप्रदेश, साध्वी सोनी गोडसे जी ने आयुर्वेद पर जोर दिया। धर्मगुरु रंजीत मिश्रा जी ने बताया कि मैथी के 10 दानें यदि रोजाना खा लिए जाएं तो कई बीमारियां दूर हो जाती हैं। जायरोपैथी के फाउंडर नरेश जी मिश्रा कमांडर गुडगांव दिल्ली ने बीमारियों का मुख्य कारण प्रदूषण बताया। उन्होंने कहा कि रोग प्रतिरोधक क्षमता लोगों की खत्म होती जा रही है। विदुषी रितु ऱाठौर ने भारत में आयुर्वेद को प्राथमिक चिकित्सा प्रणाली बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया और स्लाइड के माध्यम से विस्तृत जानकारी दी। हर्ष मिश्रा ने आयुर्वेद का समर्थन किया। सदन में चर्चा के बाद परमाराध्य ने कहा कि आयुर्वेद शास्त्र के बारे में काफी चर्चा हुई, कई लोगों ने इस पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि पहले घर में दादी और मां ही घर की वैद्य हुआ करती थीं। घर की चीजों से आधी से ज्यादा बीमारियां ठीक हो जाया करती थी। इसके बाद उन्होंने परमधर्मादेश जारी किया।
संवाददाता राहुल दुबे की रिपोर्ट।